Rudrashtadhyayi Hindi PDF in hindi | यजुर्वेद की शुक्लयजुर्वेद संहिता में आठ अध्याय के माध्यम से भगवान रुद्र का विस्तार से वर्णन किया गया है, जिसे ‘रुद्राष्टाध्यायी’ कहते हैं। रुद्राष्टाध्यायी दो शब्दों से मिलकर बना हैं। रुद्र और अष्टाध्यायी,रुद्र शिव को माना जाता है। रुद्र शिव का ही एक नाम है। और अष्टाध्यायी का मतलब होता है आठ पाठों का अध्ययन करना। रुद्राष्टाध्यायी में मंत्री का प्रयोग बहुत विस्तृत्व तरीके से किया गया है।

इन मंत्रों के अलावा इसमें बताए गया है की जल, गंगाजल, दूध, गन्ने का रस, पंचामृत आदि रस एव जलों से हमे शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए। कहा जाता है की हर एक व्यक्ति को इस रुद्राष्टाध्यायी का पाठ अपने जीवन एक न एक बार तो करने ही चाहिए। जिस से शिवजी प्रसन्न हो जाते है।और उनकी असीम कृपा हमे बनती है। rudrashtadhyay free pdf download
PDF Name | Rudrashtadhyayi Hindi PDF |
No. of page | 229 |
PDF Category | Religion & Spirituality. |
PDF Size | 12.72 MB |
Publisher | Geeta Press |
Language | Sanskrit and Hindi |
Type | Granth Book |
Country | India |
Contents
Rudrashtadhyayi | रुद्राष्टाध्यायी
सम्पूर्ण रुद्राष्टाध्यायी का एक आवृत्ति पाठ और अभिषेक करना रुद्राभिषेक कहलाता है। शिव पुराण में शतरुद्री से पूजन अभिषेक आदि का बड़ा अत्युत्तम माहात्म्य बताया गया है। इसमें भी मंत्रो का प्रयोग रुद्राष्टाध्यायी से ही किया गया है। कुछ मन्त्र बाहर से लिये गये हैं। शतरुद्री सम्बन्धी वाक्य इस प्रकार मिलते हैं:-“षष्ठषष्ठि नीलसूक्तं च पुनर्षोडशमेव च।।एषते द्वे नमस्ते द्वे नतं विद्द्वयमेव च।।मीढुष्टमेति चत्वारि वय गुंग चाष्टमेव च।।शतरुद्री समाख्याता सर्वपातकनाशिनी। यह रुद्राष्टाध्यायी Rudrashtadhyayi Gita Press Gorakhpur के द्वारा इसको लिखा व् छपा गया है।
जो व्यक्ति समुद्रपर्यंत वन, पर्वत, जल एवं वृक्षों से युक्त तथा श्रेष्ठ गुणों से युक्त ऐसी पृथ्वी का दान करता है, जो धन-धान्य, सुवर्ण और औषधियों से युक्त है, उससे भी अधिक पुण्य एक बार के ‘रुद्रीजप’ एवं ‘रुद्राभिषेक’ कहा है। इसलिये जो भगवान रूद्र का ध्यान करके रुद्री का पाठ करता है अथवा रुद्राभिषेक करता है वह इसी देह से निश्चित ही रूद्ररूप हो जाता है।रुद्राष्टाध्यायी gita press
Rudrashtadhyayi Path pdf | रुद्राष्टाध्यायी पाठ
रुद्राष्टाध्यायी की महिमा-सम्पूर्ण रुद्राष्टाध्यायी में गृहस्थ धर्म, राजधर्म, ज्ञान-वैराज्ञ, शांति, ईश्वर स्तुति आदि अनेक सर्वोत्तम विषयों का वर्णन है। मनुष्य का मन विषयलोलुप होकर अधोगति को प्राप्त न हो और व्यक्ति अपनी चित्तवृत्तियों को स्वच्छ रख सके इसके निमित्त रुद्र का अनुष्ठान करना मुख्य और उत्कृष्ट साधन है। यह रुद्रानुष्ठान प्रवृत्ति मार्ग से निवृत्ति मार्ग को प्राप्त करने में समर्थ है। इसमें ब्रह्म (शिव) के निर्गुण और सगुण दोनो रूपों का वर्णन हुआ है। जहाँ लोक में इसके जप, पाठ तथा अभिषेक आदि साधनों से भगवद्भक्ति, शांति, पुत्र पौत्रादि वृद्धि, धन धान्य की सम्पन्नता और स्वस्थ जीवन की प्राप्ति होती है; वहीं परलोक में सद्गति एवं मोक्ष भी प्राप्त होता है। वेद के ब्राह्मण ग्रंथों में, उपनिषद, स्मृति तथा कई पुराणों में रुद्राष्टाध्यायी तथा रुद्राभिषेक की महिमा का वर्णन है। रुद्राष्टाध्यायी पीडीएफ फ्री डाउनलोड
सम्पूर्ण रुद्राष्टाध्यायी पाठ | Rudrashtadhyayi PDF Hindi
” यों शतरुद्री का प्रयोग श्रेष्ठ होने पर भी रुद्राभिषेक में रुद्री का नमकचमकात्मक प्रयोग विशेष रूप से प्रचलित है। इसमें रुद्राष्टाध्यायी का पहले सात अध्याय तक पाठ करके अष्टम अध्याय में क्रमशः 4,4,4,3,3,3,2,1,1,2 मन्त्रो पर विराम करते हुए पञ्चम अध्याय अर्थात नीलसूक्त के 11 पाठ होते है।इस प्रकार एक नमकचमकात्मक रुद्राभिषेक को एक “रुद्र” कहते हैं। 11रुद्रों का एक लघुरुद्र होता है।11 लघुरुद्रों का एक महारुद्र होता है। और 11 महारुद्रों का एक अतिरुद्र होता है।ashtadhyayi rudri pdf
रुद्री पाठ | Rudri Path In Hindi
रुद्राष्टाध्यायी के पाठ और उनसे होने वाले रुद्रादि प्रयोगों के लाभ:
एक रुद्र से बालग्रहों की शान्ति होती है।3 रुद्रों से उपद्रव की शान्ति होती है। 5 रुद्रों से ग्रह शान्ति होती है।7 रुद्रों से भय का निवारण होता है।9 रुद्रों से शान्ति एवं वाजपेय फल की प्राप्ति होती है। तथा 11 रुद्रों से राजा का वशीकरण होता है।
लघुरुद्र प्रयोग:-1 लघुरुद्र से कामना की पूर्ति होती है। 3 लघुरुद्रों से शत्रु भय का नाश होता है। 5 लघुरुद्रों से शत्रु और स्त्री का वशीकरण होता है। 7 लघुरुद्रों से सुख की प्राप्ति होती है। 9 लघुरुद्रों से कुल की वृद्धि एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है।
महरुद्र प्रयोग:- 1 महरुद्र से राजभय का निराकरण, शत्रु का उच्चाटन,दीर्घायु, यश-कीर्ति-चतुर्वर्ग की प्राप्ति होती है। 3 महरुद्रों से दुष्कर कार्य भी सुख साध्य हो जाता है। 5 महरुद्रों से राज्य प्राप्ति के साधन होते हैं। 7 महरुद्रों से सप्तलोक साधन होता है। 9 महरुद्रों से मोक्ष पद के मार्ग प्राप्त होते हैं। रुद्री पाठ | Rudri Path In Hindi
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अतिरुद्र प्रयोग:-1 अतिरुद्र से देवत्व की प्राप्ति होती है।डाकिनी-शाकिनी-अभिचारादि भय का निवारण होता है। 3 अतिरुद्रों से संस्कार भूतादि बाधायें दूर होती हैं। 5 अतिरुद्रों से ग्रहजन्य फल एवं व्याधि शांत होती है। 7 अतिरुद्रों से कर्मज व्याधियां शांत होती हैं। 9 अतिरुद्रों से सर्वार्थसिद्धि होती है। 11 अतिरुद्रों से असाध्य का भी साधन होता है। इन रुद्राष्टाध्यायी के पाठ, अभिषेक आदि के द्वारा शिवकृपा से हम अपने लिए मनचाही स्थितियां निर्मित कर सकते हैं, इन प्रयोगों में प्रारब्ध को मिटाने की क्षमता है।
रुद्राष्टाध्यायी में कुल अध्याय 10 है। किन्तु इसमें से केवल 8 को ही मुख्य अध्याय माना गया है। इस में श्लोकों की संख्या कुल मिला कर 213 श्लोक है। जिसमे से प्रथम अध्याय कुल 10 श्लोक है। प्रथम अध्याय को ‘शिवसंकल्प सूक्त’ भी कहा जाता है। और द्वितीय अध्याय में 22 श्लोक विराज मान है। यह भगवान श्री विष्णु जी को समर्पित है। तृतीय और चतुर्थ अध्यायों में 17 श्लोक है।
Rudrashtadhyayi Hindi PDF
तृतीय अध्याय को देवता इन्द्र को समर्पित किया गया हैं, इस अध्याय को ‘अप्रतिरथ सूक्त’ भी कहा जाता है । चतुर्थ अध्याय को ‘मैत्र सूक्त’ कहते है। पांच अध्याय में 66 श्लोक है। और इसे ‘शतरुद्रिय’, ‘रुद्राध्याय’ या ‘रुद्रसूक्त’ भी कहा जाता है। रुद्राष्टाध्यायी के छठे अध्याय को ‘महच्छिर’ कहा जाता है। और 8 श्लोक है। सप्तम अध्याय को जटा भी कहा जाता है और इस में 7 श्लोक है। और इसके अष्टम और आखरी अध्याय में कुल 24 श्लोक है होते है। इस अध्याय को ‘चमकाध्याय’ कहा जाता है।
रुद्राष्टाध्यायी में अध्याय और श्लोकों कितने है?
- प्रथम अध्याय = 10 श्लोक
- द्वितीय अध्याय = 22 श्लोक
- तृतीय अध्याय = 17 श्लोक
- चतुर्थ अध्याय = 17 श्लोक
- पंचम अध्याय = 66 श्लोक
- षष्ठम अध्याय = श्लोक
- सप्तम अध्याय = 7 श्लोक
- अष्टम अध्याय = 29 श्लोक
- शान्त्ध्याय: = 24 श्लोक
- स्वस्तिप्रार्थनामंत्राध्याय: = 13 श्लोक
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