Kanakadhara Strotam Lyrics in Hindi | कनकधारा स्तोत्र (2024)

नमस्कार दोस्तों, इस पोस्ट में आप को Kanakadhara Strotam lyrics in hindi देंगे, इस पोस्ट में lyrics के अलावा कनकधारा स्तोत्र के बारे में भी बताया गया है। इससे जुड़े हर प्रश्नों के उत्तर आप को इस पोस्ट में मिल जायेंगे। इस पोस्ट में नीचे जा के आप कनकधारा स्त्रोत लिरिक्स इन हिन्दी में आप को मिल जाएंगी। और तो और हमने इस स्तोत्र के benefits लाभ और क्या क्या फायदे है वह भी बताया है।

कनकधारा स्त्रोत जो की आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित है। उन्होंने ही सर्वप्रथम माँ लक्ष्मी जी की स्तुति की थी। और उनकी स्तुति से ही स्वर्ण बारिश हुई थी। एक बार आदि शंकराचार्य जब भिक्षारण के लिए गांव में निकले, तब वे एक दरिद्र ब्राह्मण के यहां पहुंचे। वहा वे भिक्षा मांग बैठे। माते भिक्ष्म देही ! परंतु दुख की बात यह थी कि वह एक ब्राह्मण का घर जरूर था।

Kanakadhara Strotam Lyrics in Hindi

परंतु वह अत्यंत ही दरिद्र थी। ब्राह्मण महिला अत्यंत ही लज्जित हुई क्योंकि शंकराचार्य जी को देने के लिए उसके पास कुछ नहीं था वह घर के इधर उधर कुछ देख ने लगी कि शायद कुछ भी मिल जाए तो वे शंकराचार्य जी के झोली में डाल सके। (Kanakadhara Strotam lyrics in hindi) क्योंकि किसी भी ब्रह्मचारी को खाली हाथ वापस लौटाना उन्हें अच्छा नहीं लगा।

उन्हें उसकी पल एक आंवला मिला उन्होंने श्रद्धा पूर्वक शंकराचार्य के झोली में आंवला डाल दिया। और शंकराचार्य जी से प्राथना की और बोली बाबा मेरे पास कुछ भी नही है को में आप को दे सकू कुपया आप इस आंवले को भिक्षा के रूप में रख ले और मुझे क्षमा प्रदान करे। मां का मन बालक शंकर समझ गए की मां का मन क्या हो रहा होंगा। शंकाराचार्य जी ने उनको अपनी मां के भाती देखा, उन्हें बहुत ही दुख हुआ। इसके बाद उन्होंने मां लक्ष्मी की बहुत करुण स्वर में बहुत आर्द स्वर में मां की भक्ति करने लगे।

उनकी स्तुति करने लगे जो कि कनकधारा स्त्रोत (Kanakadhara Strotam lyrics in hindi) आज हम जिसको पड़ते व सुनते है। शंकाराचार्य जी ने इसका पाठ इतनी करुण भाव से, इतने प्रेम से मां की स्तुति की थी कि मां प्रसन्न हो कर वहा प्रकट हो गई। शंकाराचार्य जी का कनकधारा स्त्रोत बोलना और वहा लक्ष्मी जी का प्रकट होना बहुत ही आश्चर्य की बात थी। शंकाराचार्य में लक्ष्मी मां से कहा माता कृपया आप इन माता के यह विराजे और उन पर कृपा करे। माता ने कहा की वह बूढ़ी महिला में अपने पिछले जन्म में कोई पुण्य का काम नही किया था।

इस वजह से में यह विराज मान नहीं हो सकती हू। शंकाराचार्य जी ने कहा माता बलेही उन्होंने अपने पिछले जन्म में कोई पुण्य का काम नही किया होंगा किंतु उन्होंने मुझे आंवला दे कर सारा पुण्य कमा लिया लक्ष्मी मां ने शंकाराचार्य की बाते सुन कर।आसमान से मां ने स्वर्ण आंवले सोने के आंवले के आकार में स्वर्ण वर्ष कराई। माता ने कहा की जो भी इसका पाठ करेंगा उसके जीवन में अन,धन और संपत्ति की कभी कोई कमी नही होंगी। तभी से ही कनकधारा स्त्रोत में प्रसिद्ध हो गया।

कनकधारा स्तोत्र पाठ करने के लिए पहले आप लाल आसन पर बैठ जाए। और लाल रंग के कपड़े पहने, अगर आप के पास लाल कपड़े नही है तो आप कोई भी कपड़े पहन सकते है, लेकिन लक्ष्मी मां को लाल रंग ज्यादा पसंद है तो आप ज्यादा तर लाला रंग के कपड़े पहन कर पूजा में बैठे। आप जैसे पूजा करते है वैसे ही पूजा करे।

मां लक्ष्मी को प्रणाम कर और अगर आप के पास कनंकाधारा स्तोत्र पुस्तक हो तो आप पुस्तक लेकर बैठे। श्रद्धा पूर्वक आप इसका पाठ करे ज्यादा तेजी से न करे और ज्यादा जोर से भी न करे। श्रद्धा पूर्वक और प्रेम पूर्वक इसका पाठ करे जैसे शंकरचार्य जी ने किया था।

गीता प्रेस द्वारा लिखी हुई कनकधारा स्तोत्र लोगो को बहुत पसंद आती है क्यों की इस में संस्कृत अनुवाद के साथ साथ इसके उसका हिंदी अनुवाद भी है। जिससे इसका पाठ करने में और भी आसानी आती है। लोगो को समझ ने में कठिनाई नहीं होती है। कहते है की जब हम समझ कर इस स्त्रोत का पीठ करते है तो हम इसका पाठ और भी अच्छे तरीके से कर सकते है।

कई सारी पुस्तके है किंतु गीता प्रेस की पुस्तकों में सरल भाषा का इस्तमाल हुआ है इसलिए लोगो को गीता प्रेस की ही पुस्तके पसंद आती है। गीताप्रेस या गीता मुद्रणालय, विश्व की सर्वाधिक हिन्दू धार्मिक पुस्तकें प्रकाशित करने वाली संस्था है। गीता प्रेस की पुस्तकों की माँग इतनी ज्यादा है कि यह प्रकाशन हाउस मांग पूरी नहीं कर पा रहा है। गीता प्रेस की पुस्तकों की लोकप्रियता की वजह यह है कि हमारी पुस्तकें काफी सस्ती हैं।

गीता प्रेस सरकार या किसी भी अन्य व्यक्ति या संस्था से किसी तरह का कोई अनुदान नहीं लेता है। साथ ही इनकी प्रिटिंग काफी साफसुथरी होती है और फोंट का आकार भी बड़ा होता है। गीताप्रेस का उद्देश्य मुनाफा कमाना नहीं है। यहाँ सद्प्रचार के लिए पुस्तकें छपती हैं। गीता प्रेस की पुस्तकों में हनुमान चालीसा, दुर्गा चालीसा और शिव चालीसा की कीमत एक रुपये से शुरू होती है।

पौराणिक मान्यता है कि मां लक्ष्मी जिस घर में विराजमान होती है उस घर में सुख समृद्धि की घर में वर्षा होती है। शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी की अराधना करने से विशेष लाभ होता है। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने के साथ ही उन्हें लाल पुष्प अर्पित करना चाहिए। लक्ष्मी और नारायण की साथ में पूजा करने से दांपत्य जीवन में सुखमय रहता है

और घर में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती है। इसलिए शुक्रवार को मां लक्ष्मी की प्रतिमा के सामने श्रद्धापूर्वक इसका पाठ जरूर क तोरना चाहिए। कनकधारा स्तोत्र के पाठ के अंदर लिखा है की जो व्यक्ति  इसका दिन में तीनो समय पाठ करता है, तो वो कुबेर के भाती धनवान होता है। लेकिन तीनो समय इसका पाठ कर नही सकते काफी मुश्किल होता है।

इसका पाठ दो बार तो करना ही चाहिए। अगर दो बार नहीं तो एक बार तो जरूर ही करना चाहिए। एक समय भी करने से इसका काफी लाभ मिलेगा। जीवन से गरीबी और दरिद्रता अवश्य दूर हो जाता है। जीवन में इतना धन आता है की जिससे आप अपना पर्याप्त गुजारा कर सके तो इसका पाठ करना अधिक लाभदायक आप चाहें।

इस पोस्ट में आप को kanakadhara strotam lyrics in hindi में भी देने वाले है। इसके lyrics आप को हिंदी में और संस्कृत sanskrit दोनो भाषाओं में मिलेंगी।

अङ्ग हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥1॥

अर्थ – जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमाल के पेड़ का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ती रहती है तथा जिसमें सम्पूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, वह सम्पूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी की कटाक्षलीला मेरे लिए मंगलदायिनी हो।

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥2॥

अर्थ – जैसे भ्रमरी महान कमलदल पर आती-जाती या मँडराती रहती है, उसी प्रकार जो मुरशत्रु श्रीहरि के मुखारविंद की ओर बारंबार प्रेमपूर्वक जाती और लज्जा के कारण लौट आती है, वह समुद्रकन्या लक्ष्मी की मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन-सम्पत्ति प्रदान करे।

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष –
मानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्ध –
मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥3॥

अर्थ – जो सम्पूर्ण देवताओं के अधिपति इन्द्र के पद का वैभव-विलास देने में समर्थ है, मुरारि श्रीहरि को भी अधिकाधिक आनन्द प्रदान करनेवाली है तथा जो नीलकमल के भीतरी भाग के समान मनोहर जान पड़ती है, वह लक्ष्मीजी के अधखुले नयनों की दृष्टि क्षणभर के लिए मुझपर भी थोड़ी सी अवश्य पड़े।

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द –
मानन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥4॥

अर्थ – शेषशायी भगवान विष्णु की धर्मपत्नी श्रीलक्ष्मीजी का वह नेत्र हमें ऐश्वर्य प्रदान करनेवाला हो, जिसकी पुतली तथा भौं प्रेमवश हो अधखुले, किंतु साथ ही निर्निमेष नयनों से देखनेवाले आनन्दकन्द श्रीमुकुन्द को अपने निकट पाकर कुछ तिरछी हो जाती हैं।

बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥5॥

अर्थ – जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि मण्डित वक्षस्थल में इन्द्रनीलमयी हारावली सी सुशोभित होती है तथा उनके भी मन में प्रेम का संचार करनेवाली है, वह कमलकुंजवासिनी कमला की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करे।

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारे –
र्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति –
र्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥6॥

अर्थ – जैसे मेघों की घटा में बिजली चमकती है, उसी प्रकार जो कैटभशत्रु श्रीविष्णु के काली मेघमाला के समान श्यामसुन्दर वक्षस्थल पर प्रकाशित होती हैं, जिन्होंने अपने आविर्भाव से भृगुवंश को आनन्दित किया है तथा जो समस्त लोकों की जननी हैं, उन भगवती लक्ष्मी की पूजनीया मूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करे।

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥7॥

अर्थ – समुद्रकन्या कमला की वह मन्द, अलस, मन्थर और अर्धोन्मीलित दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, यहाँ मुझपर पड़े।

दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा –
मस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥8॥

अर्थ – भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्ररूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्मरूपी घाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषाद में पड़े हुए मुझ दीनरूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि करे।

इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र –
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥9॥

अर्थ – विशिष्ट बुद्धिवाले मनुष्य जिनके प्रीतिपात्र होकर उनकी दयादृष्टि के प्रभाव से स्वर्गपद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, उन्हीं पद्मासना पद्मा की वह विकसित कमल गर्भ के समान कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि प्रदान करे।

गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥10॥

अर्थ – जो सृष्टि-लीला के समय ब्रह्मशक्ति के रूप में स्थित होती हैं, पालन-लीला करते समय वैष्णवी शक्ति के रूप में विराजमान होती हैं तथा प्रलय-लीला के काल में रुद्रशक्ति के रूप में अवस्थित होती हैं, उन त्रिभुवन के एक मात्र गुरु भगवान नारायण की नित्ययौवना प्रेयसी श्रीलक्ष्मीजी को नमस्कार है।

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥11॥

अर्थ – हे माता ! शुभ कर्मों का फल देनेवाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिन्धुरूप रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमलवन में निवास करनेवाली शक्तिस्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुरुषोत्तमप्रिया पुष्टि को नमस्कार है।

नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥12॥

अर्थ – कमलवदना कमला को नमस्कार है। क्षीरसिन्धु सम्भूता श्रीदेवी को नमस्कार है। चन्द्रमा और सुधा की सगी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है।

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥13॥

अर्थ – कमलसदृश नेत्रोंवाली माननीया माँ ! आपके चरणों में की हुई वन्दना सम्पत्ति प्रदान करनेवाली, सम्पूर्ण इन्द्रियों को आनन्द देनेवाली, साम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा उद्यत है। मुझे आपकी चरणवन्दना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे।

यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
संतनोति वचनाङ्गमानसै –
स्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥14॥

अर्थ – जिनके कृपाकटाक्ष के लिए की हुई उपासना उपासक के लिए सम्पूर्ण मनोरथों और सम्पत्तियों का विस्तार करती है, श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मीदेवी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूँ।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥15॥

अर्थ – भगवति हरिप्रिये ! तुम कमलवन में निवास करनेवाली हो, तुम्हारे हाथों में लीलाकमल सुशोभित है। तुम अत्यन्त उज्ज्वल वस्त्र, गन्ध और माला आदि से शोभा पा रही हो। तुम्हारी झाँकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली देवि ! मुझपर प्रसन्न हो जाओ।

दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट –
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम्।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष –
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥16॥

अर्थ – दिग्गजों द्वारा सुवर्ण कलश के मुख से गिराये गये आकाशगंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके श्रीअंगों का अभिषेक किया जाता है, सम्पूर्ण लोकों के अधीश्वर भगवान विष्णु की गृहिणी और क्षीरसागर की पुत्री उन जगज्जननी लक्ष्मी को मैं प्रातःकाल प्रणाम करता हूँ।

कमले कमलाक्षवल्लभे
त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्‌गैः।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥17॥

अर्थ – कमलनयन केशव की कमनीय कामिनी कमले ! मैं अकिंचन ( दीनहीन ) मनुष्यों में अग्रगण्य हूँ, अतएव तुम्हारी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूँ। तुम उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरल तरंगों के समान कटाक्षों द्वारा मेरी ओर देखो।

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥18॥

अर्थ – जो लोग इन स्तुतियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयीस्वरूपा त्रिभुवनजननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति करते हैं, वे इस भूतल पर महान गुणवान और अत्यन्त सौभाग्यशाली होते हैं तथा विद्वान पुरुष भी उनके मनोभाव को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।

  • लोग अक्सर वित्तीय कठिनाइयों और बाधाओं को दूर करने में मदद पाने के लिए कनकधारा की ओर रुख करते हैं। ऐसा माना जाता है कि भजन में वित्तीय बाधाओं को दूर करने और किसी की वित्तीय स्थिति में सकारात्मक बदलाव लाने की शक्ति है।
  • ऐसा माना जाता है कि यह भजन व्यावसायिक सफलता को बढ़ाता है, ग्राहकों को आकर्षित करता है और व्यावसायिक प्रयासों में समृद्धि सुनिश्चित करता है।
  • कनकधारा को गरीबी और वित्तीय अस्थिरता से भी सुरक्षा प्रदान करने वाला माना जाता है। इस भजन के माध्यम से परमात्मा के आशीर्वाद का आह्वान करके, भक्त वित्तीय कठिनाइयों से बचने और समृद्ध जीवन जीने का प्रयास करते हैं।
कनकधारा स्तोत्र क्या है?

जब को वृद्ध महिला ने शंकराचार्य जी को भिक्षा के रूप में एक आंवला दिया तो शंकराचार्य बहुत दुखी हुए उन वृद्ध महिला की स्तिथि देख कर। तब शंकराचार्य लक्ष्मी मां की स्तुति की। उस समय शंकराचार्य जी मुख में से जो स्तुति निकली वही कनकधारा स्तोत्र है।

कनकधारा स्तोत्र कब पढ़ना चाहिए?

कनकधारा स्त्रोत कभी भी किया जा सकता है। किसी भी समय इस स्तोत्र को पढ़ा जा सकता है। किंतु इस स्तोत्र का पाठ सुबह के समय ब्रह्म मुहूर्त के समय अत्यंत ही शुभ माना गया है।

कनकधारा स्तोत्र कितनी बार करना चाहिए?

कनकधारा स्तोत्र को दिन में तीन बार करना अत्यंत ही लाभ दायक माना जाता है। और जो तीन बार इसका पाठ कर लेता है तो वे कुबेर के भाती माना गया हैं। लेकिन इस भगदढ़ भारी जिंदगी में इतनी बार करना कठिन होता है। तो स्तोत्र का पाठ आप एक या दो बार भी कर लेते है तो इसका पूर्ण लाभ आप को मिलेगा

कनकधारा स्तोत्र का पाठ कैसे करना चाहिए?

एक लाल आसान पर बैठकर। लक्ष्मी मां को प्रणाम कर और अगर आप के पास कनंकाधारा स्तोत्र पुस्तक हो तो आप पुस्तक लेकर बैठे। श्रद्धा पूर्वक आप इसका पाठ करे ज्यादा तेजी से न करे और ज्यादा जोर से भी न करे। श्रद्धा पूर्वक और प्रेम पूर्वक इसका पाठ करे जैसे शंकरचार्य जी ने किया था।

Leave a Comment