Garbh Geeta PDF in Hindi Download | गर्भ गीता

Garbh Geeta PDF in Hindi Download | Garbh geeta book in hindi pdf गर्भ गीता यह श्री कृष्ण और अर्जुन के मध्य का संवाद है। इस गीता में श्री कृष्ण उनके प्रिय भक्त अर्जुन के प्रश्नों के उत्तर देते है। गर्भ गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को कर्म से बने जन्मों कि व्याख्या करते है। वे बताते है कि किस प्रकार कौन से कर्म करने से आत्मा किस जन्मों को पाती है। गर्भ गीता वेद पुरणों के तुलना से भिन्न माना जाता है।

Garbh Geeta PDF in Hindi Download

गर्भ गीत में बताया गया है कि जुरुदिक्ष क्या होती है, हरिओम का क्या आर्थ है और जगन्नाथ कौन है। इस गीता में बताया गया कि कैसे मनुष्य आत्म ज्ञान को प्राप्त करता है। मोक्ष या मुक्ति प्राप्ति करता हैं। गर्भवती महिलाओं को गीत का पाठ सर्वोचतम बताया गया है।

और गर्भ गीता पीडीऍफ़ का पाठ सबसे उत्तम माना गया है। इस गीता में श्री कृष्ण और अर्जुन का संवाद पस्टूत है। इस गीता में यह भी कहा गया है कि क्यों किसी कि पत्नी जवानी में ही क्यों मर जाती है और क्यों पिता के पहले पुत्र मृत्यु को प्राप्त हो तो है। इन सभी प्रश्नों के उत्तर इस गर्भ गीता में विसतृत विवरण किया गया है।

श्री कृष्ण और अर्जुन संवादा

अर्जुन : हे मधुसूदन ! आप मुझे ये बताने की कृपा करे कि प्राणी अपने मा के गर्भ में आता है तो वह अपने किन गुण दोष के कारण आता है। प्राणी जन्म से पहले गर्भ कष्ट पता है। और जन्म से पहले ही असहनीय पीड़ा पता है। इसके बाद भी वह रोग पीड़ा के कारण भी दुख पता है। उसे वृद्ध अवस्था में अनेकों रोज घेर लेते है। और उसकी मृत्यू हो जाती है। हे भगवन्! मुझे बताए कि वे कोंस कार्य है जिनसे मनुष्य जन्म मृत्यु के दुख से बच सकता है।

भगवान श्री कृष्ण : हे धनुरधरी ! जन्म और मृत्यु का बन्धन तो सभी प्राणियों की तो नियति है। यानी कि जिस भी प्राणी ने इस मृत्यूलोक में जन्म लिया है उसकी मृत्यू निश्चित है।जो प्राणी संसार के नष्ट होने वाले पदार्थो से प्रेम करते है। जो प्राणी संसार कि नश्वर वस्तुओं के इच्छा रखते है। या फिर को प्राणी संसार कि दैलत पाने की कामना तो करते है। परन्तु भगवान के भक्ति से विमुख रहता है। वह बार बार अलग अलग योनियों में जन्म लेता है वो जीवन मारें और गर्भ कि पीड़ा भोगता है।

अर्जुन : हे माधव ! संसार की मोह माया से मुक्ति तो संभव नहीं है। मन पांच विकारों के वश में है। यह पाच विकार काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार है। यह में मस्त हाथी के तरह है। माया मन को हर लेती है। इस पाच विकारों में अहंकार सबसे प्रबल है। यह प्राणी को नार्क में लेजाता हैं।

हे जनार्दन ! इन मद मस्त हाथी को कैसे वश में किया जाए। Garbh Geeta PDF in Hindi अर्थात मनष्य को कौनसे प्रयत्न करने चाहिए जिनसे मन को भक्ति में लगाया का सके।

भगवान श्री कृष्ण : हे पांडुपुत्र ! जिस प्रकार मस्त हाथी को वश में करने के लिए महावत अंकुश का प्रयोग करता है। मन को काभू कने के लिए। ज्ञान रूपी अंकुश का प्रयोग करना  जरूरी है। भक्ति और ज्ञान अभ्यास करने से ही प्राप्त होते है। अहंकार करने से जीवन नर्क बन जाता है।

अर्जुन : हे जनार्धन ! कुछ प्राणी तो आपकी भक्ति प्राप्त करने के लिएं जंगलों में जाके रमते हैं। और कुछ सांसारिक मोहमाया छोड़ कर इधर उधर भटकते रहते है। अतः हे प्रभु ! इस बारे में कैसे पता करे कि आपकी भक्ति किस प्रकार प्राप्त करे।

भगवान श्री कृष्ण : हे कौंतय ! जो प्रणी मुझे खोजने के लिए वाणी में घूमते है। वे सन्यासी और वैरागी कहलाए है। वे सिर पर जाता बढ़ते है। और भस्म लगते हैं। लेकिन फिर भी के मेरे दर्शन नहीं कार पेते है। क्योंकि उनमें भक्ति और प्रेम नहीं है। वे अहंकार में डूबे हुए है। तप और आहेग तो भक्ति भक्ति में बादा डालता है। वे शुद्ध मन से भक्ति करने वाले सतत अभ्यशी जो काम,क्रोध,मोह,लोभ और अहंकार से परे है में उन्हें है दर्शन देता हूं।

अर्जुन : हे वासुदेव ! मनुष्य इन पाच विकारों से ग्रस्त हो कर अपने सांसारिक जीवन को नष्ट कार देता है। इसलिए है माधव ! मुझे यह बताइए की वह कौनसा पाप है जिससे किसी कि पत्नी अथ्यरुप में मर जाती है। पिता के रहते पुत्र कैसे मर जाता है और किस पाप के वजह से आदमी नपुंसक बन जाता है।

भगवान श्री कृष्ण : हे अर्जुन ! वह व्यक्ति जो किसे का कर्ज लेकर नहीं चुका पता है इस पाप से वह पाने लप पत्नी को खो देता है। उससी पर कर जो किसी की अमानत नही लौटता इस पाप से वह अपनी पुत्र को खो देता है। जो व्यक्ति किसी की सहायता नहीं करता वो नपुंसक बन जाता है।

अर्जुन : हे कृपनाधन ! मनुष्य किस पाप के कारण हमेशा रोगी रहते है। और किस पाप के कारण भोज धोने वाला गधे का जन्म लेता है। स्त्री और गधे का जन्म प्राणी की किस कारण से मिलता है। और मनुष्य की पाप के कारण जगन्य पशु बनता है।

भगवान श्री कृष्ण : हे पार्थ ! जो मनुष्य अपनी कन्या को बेच देता है। वह हमेशा रोगी रहता है। जो मंशहर का भोजन करता है और मदिरा पां करता है। वह गधे का जन्म पता है। जो झूठी जवाही देने वाला होता है वह स्त्री बनता है। जो व्यक्ति भोजन बनाकर स्वयं खाता है और फिर भगवान को दान करता है वह सुवर ताथ बिल्ली के योनि में प्राप्त होता है

अर्जुन : हे कृपनाधन ! इस संसार में आपने जिन भी प्राणियों को धन दौलत दी है और उत्तम वहां दी है। उन्होंने कोंसे पुण्य किए है।

भगवान श्री कृष्ण : हे धन्नजय ! जो उत्तम रीधी से दान देने योग्य को स्वर्ण दन करता है। वह उत्तम वाहन और धन दौलत की प्राप्त करता है।जो भगवान को श्क्षी मान कर कन्या दन करता है वह उत्तम पुरुष का जन्म पता है।

अर्जुन : हे कृपनाधन !आपने किसी को इतना सुन्दर बनाया है तो किसी को क्रु। किसी को धन वान बनाया है तो किसी को निर धन ऐसा क्यों

Garbh Geeta PDF in Hindi Download | गर्भ गीता पीडीऍफ़ डाउनलोड

उपरोक्त पीडीऍफ़ गर्भ गीता (गीता प्रेस गोरखपुर) पुस्तक का pdf है।

भगवान श्री कृष्ण : हे अर्जुन ! जिन प्राणियों ने अन्न दन किया है उनका स्व रूप सुन्दर है। जिन्होंने विद्या दन किया है वो विद्वान है। और स्व सूप नहीं गुण महत्व पूर्ण है। और जो संतो की सेवा करते है वो धन वान और पुत्र वान बनते है।

अर्जुन : हे मधुसूदन ! पहले मुझे यह बताए कि मनुष्य धन और सांसारिक सुखो का इतना मोह क्यों रखता है।

भगवान श्री कृष्ण : हे कौंतय ! यदि प्राणी मेरी कृपा से वंचित हो जाए तो वह धन और दौलत से मह करने लगता है। यह सब नाशवान है। जो व्यक्ति सांसारिक सुखी को त्याग कर एक पवत्र स्थान पर मेरी भक्ति करता है वह राजा का सुख पाता है। सभी वस्तुएं नाश वान है। केवल भगवान की भक्ति ही ऐसी है कि जिसका नाश नहीं हो सकता है।

अर्जुन : हे सखा ! मनुष्य में शारीरिक जैसे रक्तप्रवाह,अंधापन, खंड वाह्यू आदि का क्या कारण है। रोग क्यों होते है। यह बताने कि कृपा करे

भगवान श्री कृष्ण : जो प्राणी मेरी भक्ति से वीमुक हो कर माया में लिप्त होते है। वह रक्तप्रवाह, अंधापन, आलस्य, दरिद्रता, खंड वाह्यू आदि रोगी से ग्रशीद हो तो है। जो स्त्री अपने पति वार्ता दर्म का पालन नहीं करती वह ये सभी विकारों से ग्रसीद रहती है।

अर्जुन : हे मधुसूदन ! कृपा कर के गुरु दक्षिण के बारे में भी कुछ बताने का कष्ट करे।

भगवान श्री कृष्ण :जो बल ब्रह्मचारी और ईश्वर की भक्ति में लग हो उससे ही गुरु बनना चाहिए। उनकी देख रेख और उनकी पुज भी करे। गुरु की कृपा से विमुक्त प्राणी सात गाओ माने का पाप होता हैं ऐसे प्राणी का मुख देख ना ही पाप होता हैं। सारे संसार के गुरु जगणंथ है। विद्या का गुरु काशी। चारो वर्णों का गुरु बह्मन ब्राह्मण का गुरु सन्यासी है । सन्यासी उसे कहते है जो सब में राम गया हो । यह ब्राह्मण जगत गुरु है। जो गुरु का भक्त है वो मेरा भक्त है। भ्रह स्त गुरु से विमुख होता है वह चांडाल के समान है। जिस जगह मदिरा का पान हो उस जगह का गंगा जल भी अशुद्ध ही जाता है। उस के मुख से निकाले गुरु के भाज भी अशुद्ध हो जाते है। सभी कर्म निष्फल है ऐसे व्यक्ति सुवर,कौआ,आदि के योनियों को प्राप्त करता है वह आलस्य में डूबा तृष्कर पता है। गुरु देक्ष के भिना किसी भी प्राणी का जवान उधर संभव नहीं है। जो गुरु की सेवा करता है उसे कई आशु मेध का फल भी मिलता है।

FAQs | Garbh Geeta Book PDF

Garbh geeta padhne ke kya fayde hai?

गर्भवती महिला का मन शांत रहता है और शिशु के अंदर अच्छे गुणों का विकास होता है।

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