
श्रीमद भगवत गीता के श्लोक और उनके हिंदी अनुवाद। जैसा की हम जानते है की पवित्र भगवत गीता में कुल 18 अध्याय है जिनमे 700 श्लोक है। गीता में श्रीकृष्ण ने 574, अर्जुन ने 85, संजय ने 40 और धृतराष्ट्र ने 1 श्लोक कहाँ है। इस ग्रन्थ में जीवन जीने का सम्पूर्ण ज्ञान है।
मनुष्य जीवन का उदेश्य इसमें स्पष्ट रूप में बताया गया है। श्रीमद भगवत गीता स्वयं भगवान श्री कृष्ण के मुख से निकली है। और जीवन के हर पड़ाव को इसका प्रत्येक खण्ड प्रभावित करता है। Bhagwat Geeta 700 Shlok Hindi PDF Download
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Bhagwat Geeta 700 Shlok With Hindi Meaning
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
हे (अर्जुन) सभी धर्मों को त्याग कर अर्थात हर आश्रय को त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं (श्रीकृष्ण) तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिला दूंगा, इसमें कोई संदेह नहीं हैं।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
जो कोई भक्त मेरे लिये प्रेम से पत्ती, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुण रूप से प्रकट होकर प्रीति सहित ग्रहण करता हूँ।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन:॥
यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च य: ।
जिससे किसी को कष्ट नहीं पहुँचता तथा जो अन्य किसी के द्वारा विचलित नहीं होता, जो सुख-दुख में, भय तथा चिन्ता में समभाव रहता है, वह मुझे अत्यन्त प्रिय है।
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो य: स च मे प्रिय:॥
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
अपने द्वारा अपना संसार समुद्र से उद्धार करे और अपने को अधोगति में न डाले, क्योंकि यह मनुष्य आप ही तो अपना मित्र है और आप ही अपना शत्रु है ।
आत्मैव ह्रात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन:॥
श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।
द्धा रखने वाले मनुष्य, अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले मनुष्य, साधनपारायण हो अपनी तत्परता से ज्ञान प्राप्त कते हैं, फिर ज्ञान मिल जाने पर जल्द ही परम-शान्ति (भगवत्प्राप्तिरूप परम शान्ति) को प्राप्त होते हैं।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥
परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
सज्जन पुरुषों के कल्याण के लिए और दुष्कर्मियों के विनाश के लिए… और धर्म की स्थापना के लिए मैं युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥
हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।
यदि तुम युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख को भोगोगे.. इसलिए उठो, हे कौन्तेय , और निश्चय करके युद्ध करो।
तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।
हे भारत, जब-जब धर्म का लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयम् की रचना करता हूं अर्थात अवतार लेता हूं।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
भगवन श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है की कर्म करना तुमरा दायित्व है निःस्वार्थ कर्म करो फल की चिंता मत करो । समय आने पर तुम्हे उसका परिणाम जरूर मिलेगा।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
श्रीमद्भगवद्गीता गीता प्रेस गोरखपुर PDF Free Download
दोस्तों हम आपको वही pdf उपलब्ध करवा रहे है जो Shri Aniruddhacharya Ji के द्वारा बताई गयी है। ये गीता प्रामाणिक है और तथ्यों पर आधारित है।
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
विषयों (वस्तुओं) के बारे में सोचते रहने से मनुष्य को उनसे आसक्ति हो जाती है। इससे उनमें कामना यानी इच्छा पैदा होती है और कामनाओं में विघ्न आने से क्रोध की उत्पत्ति होती है।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
Geeta Shlok in Hindi with meaning pdf Download
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अंतिम शब्द
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